All Episodes

May 20, 2018 5 mins
रुपरेखा
रुपरेखा नामक उन्नीसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है-
राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित होते थे जिनका कोई समाधान उन्हें नहीं सूझता था। विक्रम उन प्रश्नों का ऐसा सटीक हल निकालते थे कि प्रश्नकर्त्ता पूर्ण सन्तुष्ट हो जाता था। ऐसे ही एक टेढ़े प्रश्न को लेकर एक दिन दो तपस्वी दरबार में आए और उन्होंने विक्रम सो अपने प्रश्न का उत्तर देने की विनती की। उनमें से एक का मानना था कि मनुष्य का मन ही उसके सारे क्रिया-कलाप पर नियंत्रण रखता है और मनुष्य कभी भी अपने मन के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता है। दूसरा उसके मत से सहमत नहीं था। उसका कहना था कि मनुष्य का ज्ञान उसके सारे क्रिया-कलाप नियंत्रित करता है। मन भी ज्ञान का दास है और वह भी ज्ञान द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने को बाध्य है।

राजा विक्रमादित्य ने उनके विवाद के विषय को गौर से सुना पर तुरन्त उस विषय पर अपना कोई निर्णय नहीं दे पाए। उन्होंने उन दोनों तपस्वियों को कुछ समय बाद आने को कहा। जब वे चले गए तो विक्रम उनके प्रश्न के बारे में सोचने लगे जो सचमुच ही बहुत टेढ़ा था। उन्होंने एक पल सोचा कि मनुष्य का मन सचमुच बहुत चंचल होता है और उसके वशीभूत होकर मनुष्य सांसारिक वासना के अधीन हो जाता है। मगर दूसरे ही पल उन्हें ज्ञान की याद आई। उन्हें लगा कि ज्ञान सचमुच मनुष्य को मन का कहा करने से पहले विचार कर लेने को कहता है और किसी निर्णय के लिए प्रेरित करता है।

विक्रम ऐसे उलझे सवालों का जवाब सामान्य लोगों की ज़िन्दगी में खोजते थे, इसलिए वे साधारण नागरिक का वेश बदलकर अपने राज्य में निकल पड़े। उन्हें कई दिनों तक ऐसी कोई बात देखने को नहीं मिली जो प्रश्न को हल करने में सहायता करती। एक दिन उनकी नज़र एक ऐसे नौजवान पर पड़ी जिसके कपड़ों और भावों में उसकी विपन्नता झलकती थी। वह एक पेड़ के नीचे थककर आराम कर रहा था। बगल में एक बैलगाड़ी खड़ी थी जिसकी वह कोचवानी करता था। 

राजा ने उसके निकट जाकर देखा तो वे उसे एक झलक में ही पहचान गए. वह उनके अभिन्न मित्र सेठ गोपाल दास का छोटा बेटा था। सेठ गोपाल दास बहुत बड़े व्यापारी थे और उन्होंने व्यापार से बहुत धन कमाया था। उनके बेटे की यह दुर्दशा देखकर उनकी जिज्ञासा बढ़ गई। उसकी बदहाली का कारण जानने को उत्सुक हो गये। उन्होंने उससे पूछा कि उसकी यह दशा कैसे हुई जबकि मरते समय गोपाल दास ने अपना सारा धन और व्यापार अपने दोनों पुत्रों में समान रुप से बाँट दिया था। एक के हिस्से का धन इतना था कि दो पुश्तों तक आराम से ज़िन्दगी गुज़ारी जा सकती थी। विक्रम ने फिर उसके भाई के बारे में भी जानने की जिज्ञासा प्रकट की। 

युवक समझ गया कि पूछने वाला सचमुच उसके परिवार के बारे में सारी जानकारी रखता है। उसने विक्रम को अपने और अपने भाई के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने बताया कि जब उसके पिता ने उसके और उसके भाई के बीच सब कुछ बाँट दिया तो उसके भाई ने अपने हिस्से के धन का उपयोग बड़े ही समझदारी से किया। उसने अपनी ज़रुरतों को सीमित रखकर सारा धन व्यापार में लगा दिया और दिन-रात मेहनत करके अपने व्यापार को कई गुणा बढ़ा लिया। अपने बुद्धिमान और संयमी भाई से उसने कोई प्रेरणा नहीं ली और अपने हिस्से में मिले अपार धन को देखकर घमण्ड से चूर हो गए। शराबखोरी, रंडीबाजी जुआ खेलना समेत सारी बुरी आदतें डाल लीं। ये सारी आदतें उसके धन के भण्डार के तेज़ी से खोखला करने लगीं। बड़े भाई ने समय रहते उसे चेत जाने को कहा, लेकिन उसकी बातें उसे विष समान प्रतीत हुईं। 

ये बुरी आदतें उसे बहुत तेज़ी से बरबादी की तरफ ले गईं और एक वर्ष के अन्दर वह कंगाल हो गया। वह अपने नगर के एक सम्पन्न और प्रतिष्ठित सेठ का पुत्र था, इसलिए उसकी बदहाली का सब उपहास करने लगे। इधर भूखों मरने की नौबत, उधर शर्म से मुँह छुपाने की जगह नही। उसका जीना दूभर हो गया। अपने नगर में मजदूर की हैसियत से गुज़ारा करना उसे असंभव लगा तो वहाँ से दूर चला आया। मेहनत-मजदूरी करके अब अपना पेट भरता है तथा अपने भविष्य के लिए भी कुछ करने की सोचता है। धन जब उसके पास प्रचुर मात्रा में था तो मन की चंचलता पर वह अंकुश नहीं लगा सका। धन बरबाद हो जाने पर उसे सद्बुद्धि आई और ठोकरें खाने के बाद अपनी भूल का एहसास हुआ। जब राजा ने पूछा क्या वह धन आने पर फिर से मन का कहा करेगा तो उसने कहा कि ज़माने की ठोकरों ने उसे सच्चा ज्ञान दे दिया है और अब उस ज्ञान के बल पर वह अपने मन को वश में रख सकता है।

विक्रम ने तब जाकर उसे अपना असली परिचय दिया तथा उसे कई स्वर्ण मुद्राएँ देकर होशियारी से व्यापार करने की सलाह दी। उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि लग्न शीलता उसे फिर पहले वाली समृद्धि वापस दिला देगी। उससे विदा लेकर वे अपने महल लौट आए क्योंकि अब उनके पास उन तपस्विओं के विवाद का समाधान था। कुछ समय बाद उनके दरबार में वे दोनों तपस्वी समाधान की इच्छा लिए हाज़िर हुए। विक्रम ने उन्हें कहा कि मनुष्य के शरीर पर उसका मन बार-बार नियंत्रण करने की चेष्टा करता है पर ज्ञान के बल पर विवेकशील मनुष्य मन को अपने पर हावी नहीं होने देता है। 

मन और ज्ञान में अन्योनाश्रय सम्बन्ध है तथा दोनों का अपना-अपना महत्व है। जो पूरी तरह अपने मन के वश में हो जाता है उसका सर्वनाश अवश्यम्भावी है। मन अगर रथ है तो ज्ञान सारथि। बिना सारथि रथ अधूरा है। उन्होंने सेठ पुत्र के साथ जो कुछ घटा था उन्हें विस्तारपूर्वक बताया तो उनके मन में कोई संशय नहीं रहा। उन तपस्वियों ने उन्हें एक चमत्कारी खड़िया दिया जिससे बनाई गई तस्वीरें रात में सजीव हो सकती थीं और उनका वार्त्तालाप भी सुना जा सकता था।

विक्रम ने कुछ तस्वीरें बनाकर खड़िया की सत्यता जानने की कोशिश की तो सचमुच खड़िया में वह गुण था। अब राजा तस्वीरे बना
Mark as Played

Advertise With Us

Popular Podcasts

Dateline NBC
Stuff You Should Know

Stuff You Should Know

If you've ever wanted to know about champagne, satanism, the Stonewall Uprising, chaos theory, LSD, El Nino, true crime and Rosa Parks, then look no further. Josh and Chuck have you covered.

The Nikki Glaser Podcast

The Nikki Glaser Podcast

Every week comedian and infamous roaster Nikki Glaser provides a fun, fast-paced, and brutally honest look into current pop-culture and her own personal life.

Music, radio and podcasts, all free. Listen online or download the iHeart App.

Connect

© 2024 iHeartMedia, Inc.